19वी. शताब्दी, जब लड़कियों और औरतों को घर की चार दीवारी में कैद होकर जिंदगी गुजारनी पड़ती थी। ये वो दिन थे जब औरतें केवल घर के काम-काज और खाना बनाने तक ही सिमट कर रह गई थीं। पढ़ाई-लिखाई से तो दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। उस समय अगर कोई लड़की या औरत घर से एक कदम भी बढ़ाती तो समाज के लोग कई तरह की बातें करते थे लेकिन उस समय भी कुछ महिलायें ऐसी थी जिन्होंने अपनी हिम्मत और हौसलों से पूरे देश का नाम रौशन किया।
उन्हीं में से एक है ‘कादम्बिनी गांगुली’ जो भारत की पहली ग्रेजुएट महिला होने के साथ-साथ भारत की पहली महिला डॉक्टर भी थी। उनकी ये शुरुआत देश के सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
प्रारम्भिक और व्यक्तिगत जीवन
कादम्बिनी गाँगुली जो भारत की पहली ग्रेजुएट महिला और डॉक्टर थी। उनका जन्म 18 जुलाई 1861ई. को बिहार राज्य के भागलपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम बृजकिशोर बासु था। वे एक बहुत ही नेक और उदार विचारों के थे और उन्हें शिक्षा से काफी लगाव था। उन्होंने अपनी बेटी कादम्बिनी गांगुली की शिक्षा पर पूरा जोर दिया। कादम्बिनी गांगुली ने सन् 1882 में कोलकत्ता विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे 1886 में ‘कोलकत्ता विश्वविद्यालय’ से चिकित्सा शास्त्र की डिग्री लेने वाली पहली महिला बनी थी। कुछ दिन बाद वे विदेश चली गईं। वहाँ उन्होंने ग्लास्को और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से चिकित्सा की उच्च डिग्रियां प्राप्त की। कादम्बिनी गांगुली को न सिर्फ भारत की पहली महिला फिजिशियन बनने का गौरव प्राप्त हुआ बल्कि वे पहली साऊथ एशियन महिला थी, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण लिया था। इसी के साथ 19वी. सदी में ही भारत को पहली डॉक्टर मिल गई।
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कादम्बिनी गांगुली का विवाह ब्रह्म समाज के नेता द्वारकानाथ गंगोपाध्याय के साथ हुआ था। उनके आठ बच्चे थे। इसके बावजूद भी उन्होंने अपना काम नहीं छोड़ा। उनके पति भी महिलाओं की स्थिति सुधार के लिए पहले से ही प्रयत्नशील थे। शादी के बाद दोनों साथ मिल कर इस क्षेत्र में अपना योगदान दिया। उन्होंने बालिकाओं के विद्यालय में गृह उद्योग स्थापित करने के कार्य को भी आश्रय दिया। कादम्बिनी गांगुली ‘बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय’ की रचनाओं से काफी ज्यादा प्रेरित थीं। उनके ही रचनाओं से प्रभावित होकर वे सार्वजानिक कार्यों में अपना योगदान देने लगीं।

जब उन्हें वेश्या कहा गया
कादम्बिनी गांगुली जिन्होंने समाज में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की और समाज में अपना एक बड़ा योगदान दिया लेकिन वही समाज के कुछ रूढ़िवादी लोगों द्वारा उन्हें ‘वेश्या’ जैसे बदनुमा दाग लगाने की कोशिश की गई। उन्हें कुछ कट्टरपंथी धार्मिक लोगों की संकुचित सोच का भी सामना करना पड़ा। उनलोगों ने उन्हें बदनाम करने का एक भी रास्ता नहीं छोड़ा और इस काम को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि एक रूढ़िवादी मैगजीन ‘बंगाबासी’ के एडिटर द्वारा किया जाता था। एक बार 1891 में मोहेश चंद्र पाल ने उनके वेश्या होने की खबर अपनी मैगजीन में छापी, तभी उन्होंने अपनी आपत्ति दर्ज करते हुए उसपे मुकदमा दायर कर दिया। उन्होंने कोर्ट में इस मुकदमे पर जीत हासिल की और मोहेश को 6 महीने की सजा के साथ 100 रुपए का आर्थिक जुर्माना भी लगा था। इस तरह उन्होंने सच की लड़ाई लड़ी और विजय भी प्राप्त की। उनका यही जज्बा सभी महिलाओं को अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए ताकत देती हैं।
समाजिक और राजनितिक कार्य
कादम्बिनी गांगुली जिन्होंने हमेशा समाज सेवा में अपना योगदान दिया। उन्होंने खास कर समाज में महिलाओं के हक के लिए काम किया जिसमें उन्होंने बिहार और ओड़िशा के महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किया जो कोयले की खानों में काम करती थी। इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का भी सम्मान प्राप्त किया। वे कांग्रेस की छः महिला सदस्यों में से एक थी। उन्होंने गांधी जी के साऊथ अफ्रीका आंदोलन के लिए भी चंदा इकट्ठा किया था। उन्होंने 1906 में बंगाल के विभाजन के बाद कलकत्ता में महिला सम्मेलन का भी आयोजन किया। वे 1908 में सत्याग्रह के साथ सहानुभूति व्यक्त करने के लिए कलकत्ता की एक बैठक का आयोजन और अध्यक्षता भी की जो दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल में भारतीय मजदूरों को प्रेरित करती थी। उन्होंने एक संघ का गठन भी किया था जो श्रमिकों की सहायता के लिए धन एकत्र करने के लिए था।

मृत्यु
कादम्बिनी गांगुली की मृत्यु 3 अक्टूबर 1923 को कोलकाता में हुई थी।