बिहार जो प्राचीनकाल से ही अपनी ऐतिहासिक कहानियों के लिए जाना जाता है। यहां की धरती पर कई वीर योद्धाओं का जन्म हुआ। उन्हीं में से एक हैं वीर कुंवर सिंह जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी अंग्रजों के खिलाफ लड़ाई में जीत हासिल किया। वे 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक भी थे। 1857 की क्रांति में सम्मिलित होकर इन्होंने अपने वीरता का प्रमाण दिया था। उन्होंने रीवा के जमींदारों को एक साथ कर उन्हें अंग्रजों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार किया था।
जीवन परिचय
वीर कुंवर सिंह जिन्हें हम एक महान वीर योद्धा एक रूप में जानते हैं उनका जन्म 13 नवंबर 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम साहबजादा सिंह तथा माता का नाम पंचरत्न कुंवर था। उनके पिता एक प्रसिद्ध शासक भोज वंशजो में से एक थे। उन्हें बचपन से ही पढ़ाई से ज्यादा देशभक्ति और तलवारबाजी में दिलचस्पी थी। कहते हैं कि उनके पास एक बड़ी रियासत थी लेकिन उनकी रियासत ईस्ट इंडिया कंपनी की गलत नीतियों के कारण छीन गई थी।

1857 की क्रांति
1857 की क्रांति जिसमे अंग्रेजों के साथ युद्ध के लिए प्रत्येक वर्ग के लोग चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान सभी ने मिलकर कदम बढ़ाया। जिसमें वीर कुंवर सिंह की बहादुरी को आज भी लोग भूल नहीं पाते हैं जब बिहार के दानापुर रेजिमेंट, रामगढ़ और बंगाल के बैरकपुर के सिपाहियों ने बगावत किया। उस समय मेरठ,कानपुर, लखनऊ, इलहाबाद, दिल्ली और झांसी में भी चिंगारियां भड़क उठी तब बाबू कुंवर सिंह ने अपने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
वीर कुंवर सिंह एक ऐसे महान योद्धा थे जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी अंग्रजों के खिलाफ युद्ध करने को तैयार थे। उस समय उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ इतना आक्रोश भरा था की उन्होंने अपनी उम्र की भी परवाह न की और साथ ही भारत को आजादी दिलाने की चाहत ने उन्हें और भी शक्तिशाली बना दिया था। उन्होंने अपने अद्भुत साहस और वीर पराक्रम के साथ अंग्रजों के छक्के छुड़ा दिए। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रजों के कार्यालयों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और जगदीशपुर में अंग्रजों का झंडा हटाकर अपना झंडा फहरा दिया। उन्होंने अंग्रेजों को एक बार ही नहीं बल्कि सात बार हराया था।
युद्ध के बाद जब ये गंगा पार कर अपने साथियों के साथ वापस आ रहे थे, इसी दौरान चुपके के ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों ने चारों ओर उन्हें घेर लिया और गोलीबारी करने लगे तभी उनके एक हाथ में अंग्रजों द्वारा चलाई गई गोली लग गई, जिसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपनी तलवार से हाथ को काट गंगा को समर्पित कर दिया। वे एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने एक ही हाथ से दुश्मनों को परास्त कर दिया था।

इसी कारण ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा था, उस राजपूत बूढ़े ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय उनकी उम्र 80 थी वरना अगर जवान होते तो शायद अंग्रजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।
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मृत्यु
वीर कुंवर सिंह 23 अप्रैल 1858 के युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल हो गए थे। जगदीशपुर किले पर अपना झंडा फहराने के बाद, वहाँ से अपने किले पे लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को वे वीरगति को प्राप्त हो गए। अपनी जिंदगी से लाखों लोगों में भारत की स्वाधीनता हेतु अलख जगाने वाले वीर कुंवर सिंह हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगे।